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शनिवार, नवंबर 17, 2012

एक सूरज ढल गया,
दूसरा ढलने को है।
चक्र जीवन सत्य है ये,
पल पल छलने को है।
ग्राह्य कर मनोव्यथा,
कल के अनंत पथ पर ,
अब कोई चलने को है।
इहलोक संताप देकर,
परलोक बसने को है।
आया था जिस कार्य से,
कर गया वो पूर्ण है।

सोमवार, अक्तूबर 15, 2012

परछाई

धुंधलाया सा एक साया है ,जो मेरे सामने आया है ,
पूछा मैंने उस साये से ,कौन है तू क्या नाम तेरा।
"वो बस हल्का सा मुस्काया है"
मेरे आँखों में प्रश्न बड़े,अंनत आशंकाएँ आन खड़े,
"वो अब भी निर्मल कांत खड़ा"
बेचैनी मेरी बृहद हुयी,स्थिति और भी दुखद हुई।
देख दुर्दशा ऐसी मेरी,
उसने खुद को गंभीर किया,फूटा कंठ कठोर नाद,
अब क्यूँ घबराया रे मनुज,
क्या खुद की भी पहचान नही।
इतना अँधा कैसे हो गया ,अपना ही अस्तित्व खो गया।
धन अभिमान के अंधे दौड़ में,कौन है तू क्या नाम तेरा ,
ये स्वयं भूल गया।
मन की आँखे खोल रे मानस ,देख तेरा क्या हश्र हो गया।
मैं हूँ तेरा ही कोमल मन,सत्य अर्थ प्रकाश लिए तेरी ही परछाई हूँ
तुझको तुझसे मिलवाने लायी हूँ।
                                          सुनीता

रविवार, जुलाई 15, 2012







शुक्रवार, जुलाई 13, 2012

मोहन तेरा सम्मोहन !
फ़ैल रहा चहु ओर,
जैसे हवा के,
साथ साथ,
फैलती है खुशबू,
हर ओर!
मोहन तेरा सम्मोहन!
खींचे मुझे तेरी ओर,
जैसे,पतंगा
खिंचा जाये,
लों की ओर!
मोहन तेरा सम्मोहन!
मेरी प्रीत,
जगाये ऐसी
जैसे चकवा संग चकोर.
मोहन तेरा सम्मोहन!!
मेरे ह्रदय,
समाये ऐसे,
जैसे गोकुल में नन्द किशोर..