मै अबोध ,क्या जानू सुन्दरता
तुमने कहा बहुत सुन्दर हो.
"मै संवरना सिख गयी"
मै अल्हड़ ,चंचल हिरनी,
तुम्हारे आगे पीछे डोलती ,भागती,
डगर का पता ना मंजिल का.
तुमने हाथ थाम्हा,
" मै चलना सीख़ गयी "
मैंने अधिकार जताया
तुमने समर्पण का भाव दर्शाया .
" मै समर्पित होना सीख़ गयी"
तुमने कठिन जीवन में ,
प्रेम का सरल अर्थ समझाया
हमारे प्रेम को कृष्ण-राधे सा मधुर साहचर्य बनाया.