रुकना नहीं थकना नहीं,
तू क्षण भर भी.
अब देश को तेरी जरुरत है,
कर वादा ये अपने से तू,
जंग जीत पताका फहराएँ.
अब रार गैरों से नही अपनों से है,
रणभूमि तेरा अपना घर है.
शब्दों को अपना खडग बना,
निनाद तेरा मुक्तकंठ हो.
अपनों ने भेदा खंजर ,
अपनों का खून बहाए हैं.
छाती छलनी हो जाता है ,
जब विश्वास हमारा खोता है
अब और नही बस और नही,
अक्षम्य कृत किया जिसने,
विश्वास देश का लुटा है.
कृत्घन हो चुके दम्भी को,
दंड अब जनता देगी.