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सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

मै अकेली

मै अकेली,मेरी दुनिया अकेली
सब है पर कोई नहीं!
सबकी दुनिया,उसकी अपनी
सबके सपने,उसके अपने
अपने में भी कितने अपने!
सबकी जुबां और कान अलग है,
जीने के अरमान अलग है!
औरों पर विश्वास नहीं है
अपनों से कोई आस नहीं है
जिन्दा हैं पर जान नहीं है,
मरना भी आसान नहीं है
रिश्तों में अब प्राण नहीं है
मै हूँ कौन,और मेरा कौन
इन बातों की प्यास नहीं है!