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सोमवार, अगस्त 01, 2011

माँ..माँ
क्या तू सुन रही है?
तुझमे  मैं और मुझमे तू है.
तेरा दर्पण,तेरा चेहरा,तेरी ही तो अक्श हूँ मैं.
माँ,ओ मेरी माँ......
तेरी आँखे,तेरी सांसे,तेरा ही तो रक्त हूँ मैं.
फिर क्यूँ  मेरे अपने मुझसे रूठे...
मुझको तेरी गोद से रोके,   
किलकारी क्यूँ मेरी घोंटे.
जानती हूँ  मजबूर है.
तभी तू मुझसे दूर है.
कबतक मौन रहेगी माँ...
कितना दर्द सहेगी माँ?