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रविवार, मई 08, 2011

आज कल जो देखने और पढने को मिल रहा है उससे यही  लगता है की ओसामा बिन लादेन के वारिस का पता लगाना ,
देश की सुरक्षा से भी ज्यादा जरुरी हो गया है.इतनी चिंता तो सत्य साईं और अन्य  अच्छे लोगों के वारिस के बारे में भी नही था ,
एक तरफ तो हम आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने की बात करते हैं,दूसरी तरफ आतंकवाद का वारिस जोर-शोर से ढूंढ़
रहे हैं .क्या फर्क पड़ता है की कौन अगला आतंकवादी होगा!.जो भी होगा वो इंसानियत का दुश्मन ही होगा ना?
इससे हटकर अगर हम ये सोचें की उन बचेखुचे दुश्मनों जो आतंक  का रूप ले चुके है,जो अपनी इस गहरी चोट से तिलमिलाएं हैं
उनके फ़न फ़ैलाने से पहले कुचल दें! जरुरी ये होना चाहिए की हम तैयार रहें उन कठिन परिस्थितियों के लिए,जो भविष्य के गर्भ में हैं.
क्या हम आतंकवाद के उत्तराधिकारी ढूंढ़ कर उन्हें बढ़ावा नही दे रहे? क्या ओसामा इतना इस लायक था की उसे याद किया जाये?
उस कुख्यात व कुमार्गी का अंत ऐसा ही होना तय था, ईश्वर का न्याय हमेशा सर्वोपरी होता है. 

गुरुवार, मई 05, 2011

आइना

औरों को नसीहत देता है, मनुज तू!
 कभी खुद भी अमल कर देख.
झूठ ही सोया झूठ ही जागा,
कभी सच की रह पे चल कर देख.                                      
 नीद में सपने सबने देखा,
कभी जागती आँखों के सपने देख.
दिन उजियारा जग में फैला,
रात को दिन में बदल कर देख.
खून के रिश्ते अपने होते हैं,
कभी दिल के रिश्ते निभा के देख.
लहू से होली खूब है खेली,
काया से अमृत छलका के देख.