समय नहीं समय के साथ,
हाथ नहीं किसी के हाथ.
आँखों में मैल,ह्रदय में बैर,
अधरों पर झूठी मुस्कान.
भागे मन शहरों से शहरों,
व्याकुल मन स्नेह को तरसे.
नैन एक विश्वास को बरसे
भरोसा अपना अस्तित्व खो रहा,
स्वार्थ हर दमन का साथी
ये तेरा है ,ये मेरा है.
सब मेरा है क्या तेरा है.
सपनो को सच करने को,
अस्मत को फूंक मुस्कान दिखा.
मेरी ब्लॉग सूची
सोमवार, अगस्त 23, 2010
शनिवार, अगस्त 21, 2010
लिप्सा
उस सृष्टिकर्ता के समक्ष
रे मुर्ख मनुष्य
तू ले अपना आविष्कार खड़ा
करवाने सत्कार खड़ा
गगन चुम्बी इमारतें,
परिंदों संग उड़ने की लालसा.
सब कुछ पा लेने की उन्माद में,
बहता आगे चला गया
आत्मश्लाघी बन तुने
अहंकारी अट्ठास किया.
अपनी लिप्सा में अंध ,
देखा सका ना,
तुने खोदी है खाई
प्रभु की इस सुन्दर रचना की,
क्या बीभत्स रूप किया.
मूर्ख मनु तू नही जानता
उसकी अगली चाल है क्या?
तुने किया है छल प्रकृति से,
तु ही मूल्य चुकाएगा
अपनी वांछा पे संयम रख
उस अदृश्य शक्ति से
नहीं कभी बच पायेगा .
रे मुर्ख मनुष्य
तू ले अपना आविष्कार खड़ा
करवाने सत्कार खड़ा
गगन चुम्बी इमारतें,
परिंदों संग उड़ने की लालसा.
सब कुछ पा लेने की उन्माद में,
बहता आगे चला गया
आत्मश्लाघी बन तुने
अहंकारी अट्ठास किया.
अपनी लिप्सा में अंध ,
देखा सका ना,
तुने खोदी है खाई
प्रभु की इस सुन्दर रचना की,
क्या बीभत्स रूप किया.
मूर्ख मनु तू नही जानता
उसकी अगली चाल है क्या?
तुने किया है छल प्रकृति से,
तु ही मूल्य चुकाएगा
अपनी वांछा पे संयम रख
उस अदृश्य शक्ति से
नहीं कभी बच पायेगा .
गुरुवार, अगस्त 19, 2010
आह्वान
आओ अर्जुन और आजाद,
आओ भीम और सुभाष,
हिन्दोस्तान की सुनो आवाज़.
आज मान रखनी है तुमको,
हिंद की उतर रही है ताज.
अपने ही दुशास्सन बनके,
उतार रहे वसुधा की लाज.
अज्ञात वास अब बहुत हो चुका ,
देश हमारा बहुत रो चुका.
शोणित अपना बहुत खो चुका!
क्षमा,दया,तप,त्याग मनोबल
अलंकार है इस अवनी के
खल ने किये घात पर घात
करनी उनकी अक्षम्य हो गयी.
आई अब कृपाण,गदा की बारी,
देखेगी फिर दुनिया सारी!
आओ गाँधी आओ साईं
जिनके हाथों देश सौंप गए
निर्लज्जों ने दुर्दशा बनायीं
जाके तुम परलोक बैठ गये,
मर्कट,गर्दभ,उलूक छोड़ गये,
आ भी जाओ देश पुकारे
तुम सा कोई संत कहाँ अब
लालच का कोई अंत कहाँ अब
ऐसा कोई संत नही है
जिसकी न हो काली कमाई
आओ राम आओ हनुमान
रावण आज घर-घर में बैठे
कैसे सीता लाज बचाए
आओ हनु अब तुमरी आस है
सिय की मान अब तुमरे हाथ है
महावीर बस तुम ही कर सकते
वैदेही की टोह ले आओ
हम कब से है टेर लगाते,
सुनो राम सिय हिय रोये.
आओ भीम और सुभाष,
हिन्दोस्तान की सुनो आवाज़.
आज मान रखनी है तुमको,
हिंद की उतर रही है ताज.
अपने ही दुशास्सन बनके,
उतार रहे वसुधा की लाज.
अज्ञात वास अब बहुत हो चुका ,
देश हमारा बहुत रो चुका.
शोणित अपना बहुत खो चुका!
क्षमा,दया,तप,त्याग मनोबल
अलंकार है इस अवनी के
खल ने किये घात पर घात
करनी उनकी अक्षम्य हो गयी.
आई अब कृपाण,गदा की बारी,
देखेगी फिर दुनिया सारी!
आओ गाँधी आओ साईं
जिनके हाथों देश सौंप गए
निर्लज्जों ने दुर्दशा बनायीं
जाके तुम परलोक बैठ गये,
मर्कट,गर्दभ,उलूक छोड़ गये,
आ भी जाओ देश पुकारे
तुम सा कोई संत कहाँ अब
लालच का कोई अंत कहाँ अब
ऐसा कोई संत नही है
जिसकी न हो काली कमाई
आओ राम आओ हनुमान
रावण आज घर-घर में बैठे
कैसे सीता लाज बचाए
आओ हनु अब तुमरी आस है
सिय की मान अब तुमरे हाथ है
महावीर बस तुम ही कर सकते
वैदेही की टोह ले आओ
हम कब से है टेर लगाते,
सुनो राम सिय हिय रोये.
बुधवार, अगस्त 18, 2010
प्रेम
प्रेम जीवन का आधार,
इसकी लीला अनंत-अपार.
प्रेम हो कृष्ण -राधे सा,
शिव गौरी का साहचर्य था जैसे
प्रीत चकवा चकोर है करता
आस्था देख राम की सबरी पर,
प्रेम के वश में कौन नहीं है,
प्रेम के हैं रूप अनेक,
सब्र अहिल्या का कैसे भुला तू.
विश्वास द्रौपदी के कृष्ण थे,
प्रेम के वश में मुरली मनोहर,
बने पार्थ के सारथी सहचर,
कण कण में विश्वास माँगता,
प्रेम डगर है त्याग चाहता
इस भाव का ओर न छोर,
प्रेम चक्षु से देखो गर तुम,
कण कण में फैली चहुँ ओर
दोनों हाथों से समेट लो
ह्रदय- ह्रदय निर्मल बसंत हो.
.
इसकी लीला अनंत-अपार.
प्रेम हो कृष्ण -राधे सा,
शिव गौरी का साहचर्य था जैसे
प्रीत चकवा चकोर है करता
आस्था देख राम की सबरी पर,
प्रेम के वश में कौन नहीं है,
प्रेम के हैं रूप अनेक,
सब्र अहिल्या का कैसे भुला तू.
विश्वास द्रौपदी के कृष्ण थे,
प्रेम के वश में मुरली मनोहर,
बने पार्थ के सारथी सहचर,
कण कण में विश्वास माँगता,
प्रेम डगर है त्याग चाहता
इस भाव का ओर न छोर,
प्रेम चक्षु से देखो गर तुम,
कण कण में फैली चहुँ ओर
दोनों हाथों से समेट लो
ह्रदय- ह्रदय निर्मल बसंत हो.
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सोमवार, अगस्त 16, 2010
नारी
नारी है नर का आधा,
पर वो उसकी हर राह में बाधा।
प्यार से तकरार से,
डरता है वो अपनी हार से।
फिर भी कहता ,
साथ हूँ तेरे मन कर्म और विचार से।
खुद पर उसे विश्वास नहीं है,
अहम् की चादर रखी ओढ़ है ,
पर की नैन से दुनिया देखे,
नारी के हर रूप से,
उसके अहंकार को घात लगी है.
नर है वो सर्वज्ञ,सर्वेश्वर,
नारी बस उसके अधीन हो.
पर वो उसकी हर राह में बाधा।
प्यार से तकरार से,
डरता है वो अपनी हार से।
फिर भी कहता ,
साथ हूँ तेरे मन कर्म और विचार से।
खुद पर उसे विश्वास नहीं है,
अहम् की चादर रखी ओढ़ है ,
पर की नैन से दुनिया देखे,
नारी के हर रूप से,
उसके अहंकार को घात लगी है.
नर है वो सर्वज्ञ,सर्वेश्वर,
नारी बस उसके अधीन हो.
मंगलवार, अगस्त 03, 2010
जननी हूँ
खामोशियों को मेरे कमजोरियां न समझो,खामोश हूँ मेरे अन्दर तूफान उठ रहे हैं.
तुफानो को समेटे अन्तः धधक रहे है,
अधरों के दो किनारे शैलाब को हैं रोके.
इतना न तुम कुरेदो टूट जायेंगे किनारे,
टुटा जो ये किनारा शैलाब ना रुकेगा.
तूफान उठ गया तो ,डोलेगी सारी धरती,
वीरान हो रहेगी बंजर ये सारी सृष्टि.
जननी हूँ जन्म देना कर्तव्य है हमारा,
तनया को जन्म देना अभिशाप क्यूँ हमारा.
माता बहन और पत्नी हर रूप का है स्वागत,
पुत्री हो गयी तो क्यूँ कर दिया अनादर.
बुधवार, जुलाई 28, 2010
दुश्मन दोस्त
दोस्ती का भरम टूट गया,
शायद दुश्मनी ही जीने का सबब बन जाये.
दोस्ती का जाम छलक गया ,
शायद दुश्मनी ही नशा कर जाये.
सुनते है यारी में दगा दे गया वो,
अब दुश्मनों से वफ़ा की उम्मीद की जाये.
दोस्तों ने ठिकाने बदल लिए,
अब दुश्मनों के घर तक राह बनायीं जाये.
दोस्तों के दिलों के अँधेरे से दूर,
अब दुश्मनों के दिलों की आग से रौशनी जलाई जाये.
शायद दुश्मनी ही जीने का सबब बन जाये.
दोस्ती का जाम छलक गया ,
शायद दुश्मनी ही नशा कर जाये.
सुनते है यारी में दगा दे गया वो,
अब दुश्मनों से वफ़ा की उम्मीद की जाये.
दोस्तों ने ठिकाने बदल लिए,
अब दुश्मनों के घर तक राह बनायीं जाये.
दोस्तों के दिलों के अँधेरे से दूर,
अब दुश्मनों के दिलों की आग से रौशनी जलाई जाये.
मंगलवार, मार्च 16, 2010
मैं ओर तुम
निशिगंधा सी मैं,
मस्त बयार से तुम।
हर कलि मे मैं,
अल्हड़ भ्रमर में तुम।
धवल चन्द्रिका मैं,
विकल चकोर से तुम।
अधीर घटा सी मैं,
अटल व्योम से तुम।
अबोध शिशु सी मैं,
पथप्रदर्शक तुम।
नयन नयन में मैं ,
ह्रदय ह्रदय में तुम।
सर्वस्व अर्पण मैं,
पूर्ण समर्पित तुम।
असीम धरा सी मैं,
अनंत छितिज से तुम।
रोम रोम रति मैं,
कण कण कामदेव तुम।
रविवार, फ़रवरी 21, 2010
अपनों का सौदा
अपनों का अपनों से सौदा,
अरमानो को अपनों ने रौंदा।
स्वप्न बह गए पानी बनकर,
नयनो में पलने से पहले।
कलियाँ टूट गयी शाखा से,
सूर्योदय होने से पहले।
अपनों ने मारा अपना बनाकर,
दर्द दे गये दवा बनाकर।
जीवन की उम्मीद दिखाकर,
बद्दुआ दे गये दुआ बना कर।
अपने फिर भी अपने होते है,
अपनों के सौदे होते है।
अरमानो को अपनों ने रौंदा।
स्वप्न बह गए पानी बनकर,
नयनो में पलने से पहले।
कलियाँ टूट गयी शाखा से,
सूर्योदय होने से पहले।
अपनों ने मारा अपना बनाकर,
दर्द दे गये दवा बनाकर।
जीवन की उम्मीद दिखाकर,
बद्दुआ दे गये दुआ बना कर।
अपने फिर भी अपने होते है,
अपनों के सौदे होते है।
मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010
तुम नही आस पास
अकेली साँझ,अकेली रात
ह्रदय विकल,नैनो में नीर,
तुम नही आस पास
नितांत अकेली मै,
और मेरी तन्हाई
राह तकती आहट की तेरे,
कब होगी भोर
मन कर रहा है शोर
देख तुझे झंकृत होंगे
मन के तार,
कट जाय हर पल,
सह रही हूँ यह असह्य शोर ,
कब होगी भोर
जब आओगे तुम।
लेकर अधरों पर मुस्कान,
पलकों के आलिंगन से बांध ,
बना दोगे हर पल मधुयामिनी सी,
जब तुम होगे आस पास!
अहंकार है चारों ओर
दीवारें दीवारों के बीच,
आंसू से रिश्तों को सींच.
आँखों में ईर्ष्या, ह्रदय में घात
जितने अपने उतने गैर,
अहंकार है चारों ओर!
इंसानों की लाशों पर,
कपडे बदलते लोग।
नम आँखे देख,
करवट बदलते लोग!
शमशानों में खिलते फूल,
गाँव में उड़ते धूल
रुपयों पर बैठी ये दुनिया,
भूखे नंगे,मरते लोग
साँस साँस पर आश लगी है,
आँखे खोले मरते लोग!
आंसू का कोई मोल नही है,
मद में डुबे गिरते लोग!
आंसू से रिश्तों को सींच.
आँखों में ईर्ष्या, ह्रदय में घात
जितने अपने उतने गैर,
अहंकार है चारों ओर!
इंसानों की लाशों पर,
कपडे बदलते लोग।
नम आँखे देख,
करवट बदलते लोग!
शमशानों में खिलते फूल,
गाँव में उड़ते धूल
रुपयों पर बैठी ये दुनिया,
भूखे नंगे,मरते लोग
साँस साँस पर आश लगी है,
आँखे खोले मरते लोग!
आंसू का कोई मोल नही है,
मद में डुबे गिरते लोग!
सोमवार, फ़रवरी 15, 2010
मै अकेली
मै अकेली,मेरी दुनिया अकेली
सब है पर कोई नहीं!
सबकी दुनिया,उसकी अपनी
सबके सपने,उसके अपने
अपने में भी कितने अपने!
सबकी जुबां और कान अलग है,
जीने के अरमान अलग है!
औरों पर विश्वास नहीं है
अपनों से कोई आस नहीं है
जिन्दा हैं पर जान नहीं है,
मरना भी आसान नहीं है
रिश्तों में अब प्राण नहीं है
मै हूँ कौन,और मेरा कौन
इन बातों की प्यास नहीं है!
सब है पर कोई नहीं!
सबकी दुनिया,उसकी अपनी
सबके सपने,उसके अपने
अपने में भी कितने अपने!
सबकी जुबां और कान अलग है,
जीने के अरमान अलग है!
औरों पर विश्वास नहीं है
अपनों से कोई आस नहीं है
जिन्दा हैं पर जान नहीं है,
मरना भी आसान नहीं है
रिश्तों में अब प्राण नहीं है
मै हूँ कौन,और मेरा कौन
इन बातों की प्यास नहीं है!
रविवार, फ़रवरी 14, 2010
एक कदम तो चल
चल पाँव बढ़ा एक कदम तो चल,
मिल जाएगी राह तू जरा संभल!
संबल दे मन को अपने, खिल जायेंगे फिर सपने
सपनो को अपने पंख लगा,
चल पाँव बढ़ा,एक कदम तो चल!
टुटा है क्यूँ टूटेगा क्यूँ,
पत्थर तो नहीं जो फिर न जुड़े,
हिम्मत तो कर खुशियों को पकड़
चल पाँव बढ़ा,एक कदम तो चल.
गिर गिर के उठना भाव तेरा,
उठ कर अपने अपनों को मना।
अपने पैरों के निशान बना
रिश्तों का तू अवलम्ब तो बन,
चल पाँव बढ़ा ,एक कदम तो चल !
मिल जाएगी राह तू जरा संभल!
संबल दे मन को अपने, खिल जायेंगे फिर सपने
सपनो को अपने पंख लगा,
चल पाँव बढ़ा,एक कदम तो चल!
टुटा है क्यूँ टूटेगा क्यूँ,
पत्थर तो नहीं जो फिर न जुड़े,
हिम्मत तो कर खुशियों को पकड़
चल पाँव बढ़ा,एक कदम तो चल.
गिर गिर के उठना भाव तेरा,
उठ कर अपने अपनों को मना।
अपने पैरों के निशान बना
रिश्तों का तू अवलम्ब तो बन,
चल पाँव बढ़ा ,एक कदम तो चल !
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