निराकार
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शनिवार, नवंबर 17, 2012
एक सूरज ढल गया,
दूसरा ढलने को है।
चक्र जीवन सत्य है ये,
पल पल छलने को है।
ग्राह्य कर मनोव्यथा,
कल के अनंत पथ पर ,
अब कोई चलने को है।
इहलोक संताप देकर,
परलोक बसने को है।
आया था जिस कार्य से,
कर गया वो पूर्ण है।
1 टिप्पणी:
बेनामी
11:53 am, जनवरी 21, 2013
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आपकी सराहना ही मेरा प्रोत्साहन है.
आपका हार्दिक धन्यवाद्.
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