निराकार
मेरी ब्लॉग सूची
रविवार, जुलाई 15, 2012
कान्हा एक सवाल है तुमसे ,
क्या उत्तर दे पाओगे.
गर ना हो धरती पे चिड़िया,
इसे पूर्ण कैसे बनोगे,
कान्हा एक सवाल है तुमसे,
क्या उत्तर दे पाओगे?
गर ना हो धरा पे गईया,
माखन कैसे खाओगे,
कान्हा एक सवाल है तुमसे,
क्या उत्तर दे पाओगे?
गर ना हो वसुधा पे गोपियाँ,
किन संग रास रचोगे.
कान्हा एक सवाल है तुमसे ,
क्या उत्तर दे पाओगे?
गर ना हो दुनिया में यशोदा,
मैया किसे बुलाओगे.
देख रहे हो तुम भी कान्हा,
इस दुनिया का खेल.
जिस नारी से संसार है चलता,
उसको यह संसार ही छलता
ना कोई अधिकार है उसका,
ना कोई अपना है.
ना माँ की कोख ही अपनी,
ना गोद का सपना है.
सच कहो! कान्हा,
तुम तक ना पहुचती,
उस कोख की चीख.
जाने कितनी राधा,रुक्मिणी,
मांगे जीवन भीख.
ह्रदय तुम्हारा फट नही जाता,
सुन माँ की आह!
कैसे छेड़ लेते हो कान्हा,
तुम मुरली की तान.
कैसे होगी धरती उपवन,
बिन तितली ओर फूल.
चाह्केंगी जबतक ना चिरैया,
कैसे होगी भोर.
पायल ना छनकेगी जबतक,
कैसे नाचे मनमोर.
कान्हा एक सवाल है तुमसे............
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)