उसे फिर किसी ने रुलाया है.
सपनो ने नज़रें फेरीं है,
किसी हाथ ने अंगुली छुड़ाई है.
दिल में नए अरमान लिए,
वह टूट टूट के जुड़ती है.
फिर कोई पत्थर हाथ लिए,
शीशे से उसके ख्वाबों को,
चूर चूर कर जाता है.
फिर भी वो हंसती रहती है,
ये कैसी उसकी शक्ति है.
प्रभु तू, भी इतना कठोर न बन,
कुछ खुशियाँ उसके लिए भी बुन.
क्या वो तेरा अंश नही,
जीना उसका अधिकार नही?