प्रेम जीवन का आधार,
इसकी लीला अनंत-अपार.
प्रेम हो कृष्ण -राधे सा,
शिव गौरी का साहचर्य था जैसे
प्रीत चकवा चकोर है करता
आस्था देख राम की सबरी पर,
प्रेम के वश में कौन नहीं है,
प्रेम के हैं रूप अनेक,
सब्र अहिल्या का कैसे भुला तू.
विश्वास द्रौपदी के कृष्ण थे,
प्रेम के वश में मुरली मनोहर,
बने पार्थ के सारथी सहचर,
कण कण में विश्वास माँगता,
प्रेम डगर है त्याग चाहता
इस भाव का ओर न छोर,
प्रेम चक्षु से देखो गर तुम,
कण कण में फैली चहुँ ओर
दोनों हाथों से समेट लो
ह्रदय- ह्रदय निर्मल बसंत हो.
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी सराहना ही मेरा प्रोत्साहन है.
आपका हार्दिक धन्यवाद्.