निराकार
मेरी ब्लॉग सूची
शुक्रवार, दिसंबर 19, 2014
शनिवार, नवंबर 17, 2012
सोमवार, अक्तूबर 15, 2012
परछाई
धुंधलाया सा एक साया है ,जो मेरे सामने आया है ,
पूछा मैंने उस साये से ,कौन है तू क्या नाम तेरा।
"वो बस हल्का सा मुस्काया है"
मेरे आँखों में प्रश्न बड़े,अंनत आशंकाएँ आन खड़े,
"वो अब भी निर्मल कांत खड़ा"
बेचैनी मेरी बृहद हुयी,स्थिति और भी दुखद हुई।
देख दुर्दशा ऐसी मेरी,
उसने खुद को गंभीर किया,फूटा कंठ कठोर नाद,
अब क्यूँ घबराया रे मनुज,
क्या खुद की भी पहचान नही।
इतना अँधा कैसे हो गया ,अपना ही अस्तित्व खो गया।
धन अभिमान के अंधे दौड़ में,कौन है तू क्या नाम तेरा ,
ये स्वयं भूल गया।
मन की आँखे खोल रे मानस ,देख तेरा क्या हश्र हो गया।
मैं हूँ तेरा ही कोमल मन,सत्य अर्थ प्रकाश लिए तेरी ही परछाई हूँ
तुझको तुझसे मिलवाने लायी हूँ।
सोमवार, अक्तूबर 10, 2011
माँ.
खुद में तुझको ढूंढ़ रही हूँ, माँ.......... ! ! !
कहाँ है तू ...?
तुमने कहा मुझमे है तू ,
मै तेरी परछाई हूँ !
कहाँ है माँ.........
नहीं! मुझमे तुझ सी शक्ति,
ना सहन शक्ति,
प्रेम और भक्ति...
कभी क्रोध क्यूँ नही आता तुझे,
कैसे हर पल हंसती रहती है.
सबको पल में खुश करती है.
इतना सब कैसे सहती है ....
माँ मुझमे कहाँ है तू........
कितनी भी कोशिश करती हूँ,
तुझसी ना मैं बन पाती हूँ,
क्षण मे विचलित हो जाती हूँ..
क्रोध का घेरा माथे पर,
संयम अपना खो देती हूँ..
फिर तेरी याद रुलाती है,
धीरे धीरे तू मन में समाती है,
तस्वीर तेरी समझाती है.
मुझे देख मुस्काती है..
माँ......................
खुद में तुझको ढूंढ़ रही हूँ.
कहाँ है तू ...?
तुमने कहा मुझमे है तू ,
मै तेरी परछाई हूँ !
कहाँ है माँ.........
नहीं! मुझमे तुझ सी शक्ति,
ना सहन शक्ति,
प्रेम और भक्ति...
कभी क्रोध क्यूँ नही आता तुझे,
कैसे हर पल हंसती रहती है.
सबको पल में खुश करती है.
इतना सब कैसे सहती है ....
माँ मुझमे कहाँ है तू........
कितनी भी कोशिश करती हूँ,
तुझसी ना मैं बन पाती हूँ,
क्षण मे विचलित हो जाती हूँ..
क्रोध का घेरा माथे पर,
संयम अपना खो देती हूँ..
फिर तेरी याद रुलाती है,
धीरे धीरे तू मन में समाती है,
तस्वीर तेरी समझाती है.
मुझे देख मुस्काती है..
माँ......................
खुद में तुझको ढूंढ़ रही हूँ.
सोमवार, अगस्त 22, 2011
रुकना नहीं थकना नहीं,
तू क्षण भर भी.
अब देश को तेरी जरुरत है,
कर वादा ये अपने से तू,
जंग जीत पताका फहराएँ.
अब रार गैरों से नही अपनों से है,
रणभूमि तेरा अपना घर है.
शब्दों को अपना खडग बना,
निनाद तेरा मुक्तकंठ हो.
अपनों ने भेदा खंजर ,
अपनों का खून बहाए हैं.
छाती छलनी हो जाता है ,
जब विश्वास हमारा खोता है
अब और नही बस और नही,
अक्षम्य कृत किया जिसने,
विश्वास देश का लुटा है.
कृत्घन हो चुके दम्भी को,
दंड अब जनता देगी.
हमारे अन्ना हजारे ने पिछले छःदिनों से अन्न ग्रहण नही किया है
हम सभी किसी ना किसी रूप में उनका समर्थन कर रहे है.
मेरा आप सब से नम्र निवेदन है की आप सब अपने हिस्से की एक रोटी किसी गाय को खिलाएं,
और ईश्वर से प्रार्थना करें की इस अन्न की ताकत वो अन्ना जी को दें.
ताकि वो स्वस्थ रहें और सरकार को हमारी मांग पूरी करने को मजबूर करदें .जय हिंद.
गुरुवार, अगस्त 18, 2011
नियति
शाम से ही एक धुंधला साया,
आँखों के सामने आ रहा था.
बाज़ार के भीड़ में,
एक चिर परिचित सूरत दिखी,
पल भर में वो ओझल.
अनमनी सी मै भीड़ का हिस्सा हो गयी
तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा,
आँखों में प्रश्न लिए
वही चेहरा मेरे सामने था.
मुझे ढूंढ़ रही थी?
मैंने हाँ में सिर हिलाकर ना कहा,
वो हंस पड़ा !
बोला वही पुरानी आदत.
निर्भीक मेरा हाथ थाम्हे,
भीड़ से अलग ले गया,
पूछा.. तुम कब आयीं?
निशब्द:...
अपलक उसे निहारती मैं!
मौन मैं! कुछ कह रही थी...
क्या तुम वही हो?
दूसरों को राह दिखाने वाले,
अपनी मंजिल तो बता..
बहुत बदल गये हो.
मेरे शब्द थे,
(निरर्थक हँसने के प्रयास में
कभी कभी सारे दर्द बयाँ हो जाते हैं)
क्या हुआ मुझे,अच्छा भला तो हूँ.
मैंने बात बदल दी.
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो.
गम क्या गम ? हँसते हुए उसने कहा.
और भी गम हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा.
बात बदलना तुमने कब सिखा,
तुम्हारे जाने के बाद बहुत कुछ सिखा,
सभी कुछ ना कुछ सिखाते ही रहते हैं.
तुम गयी मैं वहीँ कहीं पड़ा हूँ.
उसी खिड़की पर अबतक खड़ा हूँ.
तुमसे बात करता हूँ झगड़ता हूँ,मनाता हूँ ,
वो सब करता हूँ जो तुम्हे पसंद था.
क्यूँ करते हो?
ये निर्णय तुम्हारा ही था,
तुमने कहा वही करो,
जो ईश्वर की मर्जी है.
मेरे ईश्वर तो तुम ही थे.....
समय की मांग वही थी
उसने कहा.
फिर ये उदासी और पश्च्याताप क्यूँ?
जानता था तुम्हारे बिन जीवन नही,
पर इस कदर बीतेगी सोचा न था.
अब तो साँस लेने की इच्छा नही होती,
मैं मर चूका हूँ मेरी जीने की कसक मर चुकी है.
कोमा में पड़े किसी शरीर की तरह हो गया हूँ,
जिसकी सांसे तो चल रही है,
पर उसे महसूस नहीं होता.
तुम्हे खुश देखकर अच्छा लगता है.
और मेरा क्या ?
तुम्हे ऐसे देख मुझपर क्या गुजरती है
सोचा है कभी?
मेरे शब्द उसे निरीह कर गये,
मैं उठकर चली आई,
वो देर तक देखता रहा,
गुरुवार, अगस्त 04, 2011
मै अबोध ,क्या जानू सुन्दरता
तुमने कहा बहुत सुन्दर हो.
"मै संवरना सिख गयी"
मै अल्हड़ ,चंचल हिरनी,
तुम्हारे आगे पीछे डोलती ,भागती,
डगर का पता ना मंजिल का.
तुमने हाथ थाम्हा,
" मै चलना सीख़ गयी "
मैंने अधिकार जताया
तुमने समर्पण का भाव दर्शाया .
" मै समर्पित होना सीख़ गयी"
तुमने कठिन जीवन में ,
प्रेम का सरल अर्थ समझाया
हमारे प्रेम को कृष्ण-राधे सा मधुर साहचर्य बनाया.
सोमवार, अगस्त 01, 2011
क्या तू सुन रही है?
तुझमे मैं और मुझमे तू है.
तेरा दर्पण,तेरा चेहरा,तेरी ही तो अक्श हूँ मैं.
माँ,ओ मेरी माँ......
तेरी आँखे,तेरी सांसे,तेरा ही तो रक्त हूँ मैं.
फिर क्यूँ मेरे अपने मुझसे रूठे...
मुझको तेरी गोद से रोके,
किलकारी क्यूँ मेरी घोंटे.
जानती हूँ मजबूर है.
जानती हूँ मजबूर है.
तभी तू मुझसे दूर है.
कबतक मौन रहेगी माँ...
कितना दर्द सहेगी माँ?
शुक्रवार, जुलाई 29, 2011
उसका दर्द
उसे फिर किसी ने रुलाया है.
सपनो ने नज़रें फेरीं है,
किसी हाथ ने अंगुली छुड़ाई है.
दिल में नए अरमान लिए,
वह टूट टूट के जुड़ती है.
फिर कोई पत्थर हाथ लिए,
शीशे से उसके ख्वाबों को,
चूर चूर कर जाता है.
फिर भी वो हंसती रहती है,
ये कैसी उसकी शक्ति है.
प्रभु तू, भी इतना कठोर न बन,
कुछ खुशियाँ उसके लिए भी बुन.
क्या वो तेरा अंश नही,
जीना उसका अधिकार नही?
गुरुवार, जुलाई 21, 2011
बिटिया न कीजो
आज वो नही आई,
फिर घर पर कुछ हुआ होगा.
उसके रिसते घाव को कुरेदा होगा .
लड़की होने के ताने दिए होंगे,
रंग रूप कद काठी,से हिन् बताया होगा.
फिर कोई रिश्तों के सौदागर पधारें होंगे.
उसे चलाकर,उठाकर,बिठाकर, गवाकर,
सिलाई बुनाई,पकवान बनवाए होंगे.
फिर नैन नक्श में कमियाँ गिनवाई होंगी.
अपने सुपुत्र की उपलब्धियों की लिस्ट थमाई होगी,
पिता को बेटी के बाप होने का दर्द समझाया होगा.
सोचकर खबर कर देंगे,ऐसा कह निकल गए होंगे
माँ ने बढ़ती उम्र की दुहाई दी होगी,
पिता ने दहेज़ की असमर्थता जताई होगी.
मुँह पर दुप्पटा रख उसने अपनी आवाज़ दबाई होगी,
उसे बेटी होने पर नफ़रत आई होगी.
"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो"
मन ही मन ईश्वर से मनाया होगा.
रविवार, मई 08, 2011
आज कल जो देखने और पढने को मिल रहा है उससे यही लगता है की ओसामा बिन लादेन के वारिस का पता लगाना ,
देश की सुरक्षा से भी ज्यादा जरुरी हो गया है.इतनी चिंता तो सत्य साईं और अन्य अच्छे लोगों के वारिस के बारे में भी नही था ,
एक तरफ तो हम आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने की बात करते हैं,दूसरी तरफ आतंकवाद का वारिस जोर-शोर से ढूंढ़
रहे हैं .क्या फर्क पड़ता है की कौन अगला आतंकवादी होगा!.जो भी होगा वो इंसानियत का दुश्मन ही होगा ना?
इससे हटकर अगर हम ये सोचें की उन बचेखुचे दुश्मनों जो आतंक का रूप ले चुके है,जो अपनी इस गहरी चोट से तिलमिलाएं हैं
उनके फ़न फ़ैलाने से पहले कुचल दें! जरुरी ये होना चाहिए की हम तैयार रहें उन कठिन परिस्थितियों के लिए,जो भविष्य के गर्भ में हैं.
क्या हम आतंकवाद के उत्तराधिकारी ढूंढ़ कर उन्हें बढ़ावा नही दे रहे? क्या ओसामा इतना इस लायक था की उसे याद किया जाये?
देश की सुरक्षा से भी ज्यादा जरुरी हो गया है.इतनी चिंता तो सत्य साईं और अन्य अच्छे लोगों के वारिस के बारे में भी नही था ,
एक तरफ तो हम आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने की बात करते हैं,दूसरी तरफ आतंकवाद का वारिस जोर-शोर से ढूंढ़
रहे हैं .क्या फर्क पड़ता है की कौन अगला आतंकवादी होगा!.जो भी होगा वो इंसानियत का दुश्मन ही होगा ना?
इससे हटकर अगर हम ये सोचें की उन बचेखुचे दुश्मनों जो आतंक का रूप ले चुके है,जो अपनी इस गहरी चोट से तिलमिलाएं हैं
उनके फ़न फ़ैलाने से पहले कुचल दें! जरुरी ये होना चाहिए की हम तैयार रहें उन कठिन परिस्थितियों के लिए,जो भविष्य के गर्भ में हैं.
क्या हम आतंकवाद के उत्तराधिकारी ढूंढ़ कर उन्हें बढ़ावा नही दे रहे? क्या ओसामा इतना इस लायक था की उसे याद किया जाये?
उस कुख्यात व कुमार्गी का अंत ऐसा ही होना तय था, ईश्वर का न्याय हमेशा सर्वोपरी होता है.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)