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सोमवार, अगस्त 22, 2011

रुकना नहीं थकना नहीं,
तू क्षण भर भी.
 अब देश को तेरी जरुरत है,
कर वादा ये अपने से तू,
 जंग जीत पताका फहराएँ. 
अब  रार गैरों से नही अपनों से है,
रणभूमि तेरा अपना घर है.
शब्दों को  अपना खडग बना,
निनाद तेरा मुक्तकंठ हो. 
अपनों ने भेदा खंजर ,
अपनों का खून बहाए हैं
छाती छलनी हो जाता है ,
जब विश्वास हमारा खोता है
अब और नही बस और नही,
 अक्षम्य कृत किया जिसने, 
विश्वास देश का लुटा है.
कृत्घन हो चुके दम्भी को, 
दंड अब जनता देगी.
 
 
 

3 टिप्‍पणियां:

  1. अब और नही बस और नही,
    अक्षम्य कृत किया जिसने,
    विश्वास देश का लुटा है.
    कृत्घन हो चुके दम्भी को,
    दंड अब जनता देगी.

    सही दिशा की तरफ प्रेरित करती रचना ....आपकी इस प्रेरक रचना को पढ़कर मन सोचने पर विवश हो गया ...आपका आभार

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  2. क्रांतिकारी तेवर.
    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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  3. Upadhyay jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
    आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए...
    BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
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आपकी सराहना ही मेरा प्रोत्साहन है.
आपका हार्दिक धन्यवाद्.