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मंगलवार, अगस्त 03, 2010

जननी हूँ


खामोशियों को मेरे कमजोरियां न समझो,खामोश हूँ मेरे अन्दर तूफान उठ रहे हैं.
तुफानो को समेटे अन्तः धधक रहे है,
अधरों के दो किनारे शैलाब को हैं रोके.
इतना न तुम कुरेदो टूट जायेंगे किनारे,
टुटा जो ये किनारा शैलाब ना रुकेगा.
तूफान उठ गया तो ,डोलेगी सारी धरती,
वीरान  हो रहेगी बंजर ये सारी सृष्टि.
जननी हूँ जन्म देना कर्तव्य  है हमारा,
तनया को जन्म देना अभिशाप क्यूँ हमारा.
माता बहन और पत्नी हर रूप का है स्वागत,
पुत्री हो गयी तो क्यूँ कर दिया अनादर.

1 टिप्पणी:

  1. सामाजिक चेतना जगाती सच्ची और बहुत अच्छी रचना

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आपकी सराहना ही मेरा प्रोत्साहन है.
आपका हार्दिक धन्यवाद्.